गायत्री मंत्र सर्वाक्षर महिमा. By-Nilesh Konde-Deshmukh

गायत्री  मंत्र  सर्वाक्षर  महिमा

*''ॐ''*  या  अक्षराचा  उच्चार  केला  असता  मस्तकातील  भाग  प्रभावित  होतो.  

*''भू:''*  या  अक्षराच्या  उच्चाराने  उजव्या  डोळयावरील  चार बोटांचा  कपाळाचा  भाग  जागृत   होतो.

*''भूव:''*  च्या  उच्चारणाने  मानवाच्या  भृकुटीच्या  वरील  तीन  अंगुलीचा  भाग  प्रभावित  होतो.

*''स्व:''*  या  अक्षराच्या  उच्चाराने  डाव्या  डोळयावरील  कपाळाचा  चार  अंगुली  इतका  भाग  जागृत   होतो.

*''तत्''*  च्या  उच्चाराने  आज्ञा  चक्रामध्ये  असलेली  'तापिनी'  ग्रंथीतील  सूप्त  असलेली  'साफल्य'  शक्ति   जागृत   होते.

*''स''*  च्या  उच्चाराने  डाव्या  डोळयातील  सफलता  नांवाच्या  ग्रंथीमध्ये  सुप्त  रूपाने  असलेली  'पराक्रम'  शक्ति  प्रभावित  होते.

*''वि''* चे  उच्चारण  केले  असता  डाव्या  डोळयामधील  'विश्व'  ग्रंथीमध्ये  स्थित  असलेली  'पालन'  शक्ति   जागृत   होते.

*''तु''*  या  अक्षराच्या  उच्चारणाने  डाव्या  कानात  असलेल्या  'तुष्टी'  नांवाच्या  ग्रंथीतील  'मंगळकर'  शक्ति   प्रभावित  होते.

*''र्व''*  या  अक्षराच्या  उच्चाराने  उजव्या  कानात  स्थित  असलेल्या  'वरदा'  ग्रंथीतील  'योग'  नावाची  शक्ति   सिध्द  होते.

'रे''  चा  उच्चार  केला   असता  नासिकेच्या  मुळाशी  स्थित  असलेल्या  'रेवती'  ग्रंथीतील  'प्रेम'  शक्तिची   जागृती   होते.

*''णि''*  च्या  उच्चाराने  वरील  ओठावर   असलेल्या  'सूक्ष्म'  ग्रंथीतील  सुप्त  शक्ति   'धन'  संध्य  जागृत   होते.

*''यं''*  या  अक्षराच्या  उच्चाराने  आपल्या  खालच्या  ओठावर   असलेल्या  'ज्ञान'  ग्रंथीतील  'तेज'  शक्तीची   सिध्दि  होते.

*''भर''*  या  अक्षर  समुदायाच्या  उच्चारणाने  कंठत  असलेल्या  'भग'  ग्रंथीतील  'रक्षणा'  शक्ति   जागृत   होते.

*''गो''*  चा  उच्चार  केला  असता  कंठकूपात  स्थित  असलेल्या  'गोमती'  नावाच्या  ग्रंथीतील  'बुध्दि'  शक्तीची   सिध्दि  होते.

*''दे''*  च्या  उच्चाराने  डाव्या  छातीच्या  वरच्या  भागात  असलेल्या  'देविका'  ग्रंथीतील  'दमन'  शक्ति   प्रभावित  होते.

*''व''*  चा  उच्चार  उजव्या  छातीच्या  वरील  भागात  असलेल्या  'वराही'  ग्रंथीतील  'निष्ठा'  शक्तीची   सिध्दि  करतो.

*''स्य''*  याच्या  उच्चारणाने  पोटाच्या  वरील  बाजूस  (ज्या  ठिकाणी   बरगडया  जुळतात)  सिंहिणी  नावाची  ग्रंथी  असते.  या  ग्रंथीतील  'धारणा'  शक्ति   प्रभावित  होते.

*''धी''*  च्या  उच्चारणाने  यकृतात  असलेल्या  'ध्यान'  ग्रंथीतील  'प्राणशक्ति '  सिध्द  होते.

*''म''*  या  अक्षराच्या  उच्चाराने  आपल्या  प्लिहा  मध्ये  असलेल्या  'मर्यादा'  ग्रंथीतील  'संयम'  शक्तिची  जागृती   होते.

*''हि''*  च्या  उच्चाराने  नाभीमधील  'स्फुट'  ग्रंथीतील  'तपो'  शक्ति   सिध्द  होते.

*''धी''*  या  अक्षराच्या  उच्चारणाने  पाठीच्या   मागील  करण्याच्या  खालील  भागात  असलेल्या  'मेघा'  ग्रंथीतील  'दूरदर्शिता'  शक्तीची   सिध्दि  होते.

*''यो''*  च्या  उच्चारणाने  डाव्या  भूजेत  स्थित  असलेल्या  'योगमाया'  ग्रंथीतील  'अंतर्निहित'  शक्ति जागृत   होते.

*''यो''*  च्या  उच्चारणाने  उजव्या  भुजेमध्ये  स्थित  असलेल्या  'योगिनी'  ग्रंथीतील  'उत्पादन'  शक्ति जागृत   होते.

*''न:''*  या  अक्षराच्या  उच्चारणांने  उजव्या  कोपरामध्ये  असलेल्या  'धारीणी'  ग्रंथीतील  'सरसता'  शक्तीची   सिध्दि  होते.

*''प्र''*  या  अक्षराच्या  उच्चारणाने  डाव्या  कोपरात  असलेल्या  'प्रभव'  ग्रंथीतील  'आदर्श'  नावाच्या  शक्तीची  जागृती   होते.

*''चो''*  या  अक्षराच्या  उच्चारणाने  उजव्या  मनगटात  स्थित  असलेल्या  'उष्मा'  ग्रंथीतील  'साहस'  शक्तीची  सिध्दि  होते.

*''द''*  या  अक्षराच्या  उच्चारणाने  उजव्या  तळहातावर  असलेल्या  'दृश्य'  नांवाच्या  ग्रंथीतील  'विवेक'  शक्तीची   जागृती   होते.

*''यात्''*  या  अक्षर  द्वयांच्या  उच्चारणाने  डाव्या  तळहातावरील  'निरंजन'  ग्रंथीतील  'सेवा'  शक्ति  सिध्द  होते.

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